सैटेलाइट क्या है और कैसे काम करता है?
सैटेलाइट एक प्रकार का उपग्रह है जो भूमि के आसपास स्थित होता है और आकाश में चक्कर लगाते हुए स्थानीय विज्ञान, संचार, मानवीय वस्तुओं के अनुसंधान, निर्माण, निदेशन, तस्वीरों और जानकारी के ट्रांसमिशन जैसे कार्यों के लिए उपयोग होता है। इसका मुख्य उद्देश्य संचार करना होता है, जिसमें विभिन्न विज्ञान, निर्माण, रक्षा, नेविगेशन और अंतरिक्ष अनुसंधान संगठनों द्वारा उच्च स्तरीय जानकारी की आवश्यकता होती है।
Satellite कैसे काम करता है?
सैटेलाइट के काम करने का तरीका अत्यंत विशेषज्ञता की मांग करता है और इसमें विभिन्न प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। नीचे दिए गए हैं कुछ महत्वपूर्ण कार्यों का वर्णन:
- उपग्रह निर्माण: सैटेलाइट का निर्माण करने के लिए, एक विशेष डिज़ाइन की आवश्यकता होती है जो अपने उद्देश्यों के अनुसार बनाया जाता है। इसमें ध्यान देने योग्य तत्व शामिल होते हैं जैसे यांत्रिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर, विज्ञान, संचार उपकरण, ऊर्जा संग्रहण और उपयोगिता की सुविधाओं का प्रबंधन करने के लिए प्रणाली।
- प्रक्षेपण: सैटेलाइट को धरती के आसपास या बाहरी अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाता है। यह प्रक्रिया एक प्रक्षेपण यांत्रिक द्वारा की जाती है जो उपग्रह को ठीक राह पर और सही स्थान पर पहुंचाता है। प्रक्षेपण में उच्च गति और सही दिशा की आवश्यकता होती है ताकि सैटेलाइट उपयोगी इलेक्ट्रॉनिक्स यांत्रिकी को खो न दे और स्थानीय और ग्लोबल कवरेज की सुविधा प्रदान कर सके।
- उपग्रह नियंत्रण: सैटेलाइट को नियंत्रित करने के लिए उसे धरती से संपर्क स्थापित किया जाता है। इसके लिए नियंत्रण केंद्र और उपग्रह के बीच एक नियंत्रण लिंक स्थापित किया जाता है जिसके माध्यम से दूरस्थ डेटा, कमांड और नियंत्रण दिए जा सकते हैं।
- संचार: संचार सैटेलाइट सबसे प्रमुख उपयोगों में से एक है। यह धरती पर एक स्थानीय क्षेत्र से दूसरे स्थानीय क्षेत्र में डेटा और संवाद को ट्रांसमिट करने के लिए उपयोग होता है। संचार सैटेलाइट उच्च गति, अधिक संवाद क्षमता और बेहतर रिपीटर सिस्टम के साथ बनाए जाते हैं। यह इंटरनेट, टेलीविजन, फोन, रेडियो, ईमेल और अन्य संचार सेवाओं के लिए व्यापक रूप से उपयोग होता है।
- जैवविज्ञान और नैतिकता: सैटेलाइट को जैवविज्ञान और नैतिकता के अनुसंधानों में उपयोग किया जाता है। उपग्रह विज्ञान के माध्यम से धरती और उपग्रहों के बीच संचरण, तापमान, वायुमंडल, उष्णता और अन्य विज्ञानीय पैरामीटरों की माप करने में मदद करता है। यह जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं के नियंत्रण, बाढ़, सूखे, ज्वालामुखी विज्ञान और अन्य वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए महत्वपूर्ण सूत्र हो सकता है।
सैटेलाइट एक संचार यंत्र के रूप में काम करता है। संचार सैटेलाइट के लिए वाहक युक्तियां का उपयोग किया जाता है जिसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का उपयोग होता है। सैटेलाइट एक ग्रह से दूसरे ग्रह की दिशा में डेटा को ट्रांसमिट करता है। इसके लिए उपग्रह में एक अन्तरिक्ष परिसंचरण स्थापित किया जाता है जो धरती के साथ संचार लिंक का निर्माण करता है।
संचार सैटेलाइट की प्रमुख घटना एक ट्रांसपोंडर के माध्यम से होती है। ट्रांसपोंडर वाहक उपकरण होता है जो प्राप्त डेटा को उपग्रह से धरती पर और उल्लेखनीय रिपीटर के माध्यम से भेजता है। ट्रांसपोंडर में उच्च गति वाले इलेक्ट्रॉन यंत्रिकी का उपयोग किया जाता है जो संचार सिग्नल को सूचित करता है और विशेष विवरणों को उठा सकता है।
संचार सैटेलाइट में इंटरनेट, टेलीविजन, फोन, रेडियो, वाणिज्यिक संचार और दूसरे डिजिटल सेवाओं के लिए उपयोग किए जाने वाले कई उपकरण होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख उपकरण निम्नलिखित हैं:
- ट्रांसपोंडर: ट्रांसपोंडर डिजिटल डेटा और संवाद को प्राप्त और प्रसारित करने के लिए उपयोग होता है। यह उपग्रह से प्राप्त संकेतों को धरती पर और उल्लेखनीय रिपीटर के माध्यम से पहुंचाता है।
- आंतरिक्ष अन्तर्दृष्टि संवेदक: यह सैटेलाइट को धरती से पूर्वानुमानित विवरण और जानकारी प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह मौसम पूर्वानुमान, भूकंप ज्ञानकोशीय, पर्यावरणीय और अन्य जानकारी प्रदान करता है।
- रिपीटर: रिपीटर संचार सिग्नल को शुद्ध करने और प्रसारित करने के लिए उपयोग होता है। यह सिग्नल में आवश्यक सुधार करके स्थानीय क्षेत्रों और दूरस्थ क्षेत्रों के बीच कनेक्शन सुनिश्चित करता है।
- एंटीना: एंटीना संचार सिग्नल को पकड़ने और छोड़ने के लिए उपयोग होती है। इसका उपयोग सैटेलाइट को संचार इलेक्ट्रॉनिक्स यंत्रिकी तक पहुंचने में मदद करता है।
- कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर: संचार सैटेलाइट में कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर का उपयोग होता है जो सिग्नल प्रसारण, डेटा प्रबंधन, संचार कनेक्शन का निर्माण और अन्य कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है।
सैटेलाइट कितने प्रकार के होते हैं
सैटेलाइट के चार मुख्य प्रकार होते हैं: जियोस्टेशनरी सैटेलाइट, लो आर्बिट सैटेलाइट, मीडियम आर्बिट सैटेलाइट और उच्च आर्बिट सैटेलाइट। जियोस्टेशनरी सैटेलाइट धरती के ऊपर एक निश्चित स्थान पर स्थित होता है और धरती के साथ एक ही गति और दिशा में घूमता है। यह सैटेलाइट स्थानीय क्षेत्रों के लिए संचार सेवाएं प्रदान करता है। लो आर्बिट सैटेलाइट धरती के करीबी आंतरिक्ष में स्थित होता है और अधिकांश टेलीविजन और रेडियो सेवाएं प्रदान करता है। मीडियम आर्बिट सैटेलाइट धरती के ऊपर स्थानित होता है और संचार सेवाएं प्रदान करने के लिए मध्यम आवासीय आंतरिक्ष में घूमता है। उच्च आर्बिट सैटेलाइट बहुत ऊपरी आंतरिक्ष में स्थित होता है और संचार सेवाएं और वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए उपयोग होता है।
एक संचार सैटेलाइट की कार्यप्रणाली में कई महत्वपूर्ण चरण होते हैं। पहले, सैटेलाइट जोड़ा जाता है और इसके लिए उपग्रह प्रमाणित किया जाता है। फिर, उपग्रह को निर्धारित यात्रा पथ पर रखा जाता है और उच्चतम गति तक पहुंचने के लिए धरती के चारों ओर घूमता है। उपग्रह की धारी के बाद, उपग्रह द्वारा प्राप्त और प्रेषित किए गए संकेतों को ट्रांसपोंडर द्वारा संसाधित किया जाता है और इसे धरती पर प्रेषित किया जाता है। इसके बाद, संचार सिग्नल स्थानीय रिपीटर द्वारा सुधारित किए जाते हैं और सिग्नल को प्राप्ति स्थानों तक पहुंचाने के लिए पुनः ट्रांसमिट किया जाता है। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है ताकि संचार सिग्नल स्थानीय क्षेत्रों और दूसरे संचार स्थानों के बीच पहुंच सके।
संचार सैटेलाइट की कार्यप्रणाली में कई चुनौतियाँ हो सकती हैं। एक महत्वपूर्ण चुनौती, संकेतों के लिए प्राप्ति स्थानों के बीच दूरी को पार करने की जरूरत होती है। उच्च आर्बिट सैटेलाइट उच्चतम आंतरिक्ष में स्थित होता है और धरती से दूसरे संचार सैटेलाइट तक का यात्रा आंतरिक्ष में कई हजार किलोमीटर की दूरी का अर्धचक्रीय समय ले सकती है। इसके लिए, विशेष उच्च गति और स्थानांतरण प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। एक और चुनौती इंटरफेरेंस हो सकती है, जो अनचाहे रेडियो या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रुकावट के रूप में प्रकट हो सकती है। इसके लिए, सैटेलाइट के डिजाइन और संचार सिस्टम को एक ऐसे तरीके से विकसित किया जाना चाहिए जो इंटरफेरेंस को कम से कम कर सके।
संचार सैटेलाइट आजकल संचार, टेलीविजन, इंटरनेट, ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (GPS) और वैज्ञानिक अनुसंधान आदि के क्षेत्रों में व्यापक उपयोग किए जाते हैं। सैटेलाइट संचार ने संचार के क्षेत्र में वहाँ की सीमाओं को मिटा दिया है जहां तार या इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता में सीमाएं होती थी। संचार सैटेलाइट के द्वारा उपलब्ध कराए गए सेवाएं सिर्फ शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहीं, बल्कि आज वे ग्रामीण क्षेत्रों तक भी पहुंचती हैं जहां तारों की व्यापकता कम हो सकती है।
संचार सैटेलाइट और इंटरनेट के मिलने से ग्लोबल और दूरसंचार का एक नया युग आया है। आज, लोग दूसरे देशों में बैठे हुए व्यक्तियों से संपर्क कर सकते हैं, वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग कर सकते हैं, इंटरनेट के माध्यम से जानकारी और संसाधनों तक पहुंच सकते हैं, ईमेल, चैट और सोशल मीडिया के माध्यम से संवाद कर सकते हैं और वेबसाइट, एप्लिकेशन और अन्य ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं। इससे व्यापार, शिक्षा, मनोरंजन, संगठनों का कार्य, अनुसंधान और विज्ञान में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं।
सैटेलाइट तक पहुंचने और संचार सेवाओं को प्रदान करने के लिए, विशेष तकनीकी और अवस्थानिक योग्यताएं आवश्यक होती हैं। सैटेलाइट निर्माण के लिए, विज्ञान, इंजीनियरिंग, गणित, और नवाचारी तकनीकों का उपयोग किया जाता है। वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, निर्माणकर्ताओं और टेक्निशियनों की टीम संचार सैटेलाइट के विभिन्न पहलुओं पर काम करती है, जो सैटेलाइट के लिए जरूरी होते हैं। सैटेलाइट का निर्माण मध्यम से लेकर सबसे ऊची श्रेणी के विज्ञानिक और इंजीनियरिंग कार्यों तक कई विभाजनों में होता है।
संचार सैटेलाइट आधुनिक समय की एक महत्वपूर्ण तकनीकी प्रगति है और इसने मानव समाज को बदल दिया है। यह दूरसंचार के क्षेत्र में गहरा परिवर्तन लाया है, लोगों को एक दूसरे से जोड़ा है और जगत को एक ग्लोबल समुदाय की तरह संपन्न किया है। संचार सैटेलाइट का उपयोग आगामी समय में और भी अधिक विस्तार और उन्नति के साथ बढ़ेगा और हमारे संपर्क और संचार का तरीका बदलता रहेगा।
Satellite अंतरिक्ष में कैसे टिका रहता है?
सैटेलाइट अंतरिक्ष में टिका रहता है धूल, ग्रहों और ग्रहमंडलीय बलों का संतुलन, और अन्य कारकों के संयोजन के कारण। यहां कुछ मुख्य कारण हैं जो सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थिर रखते हैं:
- ग्राविटी: सैटेलाइट को भूमि की गुरुत्वाकर्षण के बल के कारण अंतरिक्ष में टिका रहता है। ग्राविटी बल सैटेलाइट को पृथ्वी की आकृति के चारों ओर घुमाता है और उसे स्थिर रखता है।
- सेंट्रिफुगल बल: कई सैटेलाइट तेजी से घूमते हुए होते हैं जिससे सेंट्रिफुगल बल उत्पन्न होता है। यह बल उपग्रह को पृथ्वी की ओर समेकित रखता है।
- आकृति: सैटेलाइट की आकृति और उसका माध्यमिक केंद्र सैटेलाइट को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक बार जब सैटेलाइट उपग्रह पर प्रक्षेपित होता है, तो उसकी आकृति उसे संतुलित रखती है और उसे अपने स्थान पर बनाए रखती है।
- रांगेंटियल बल: सैटेलाइट में रांगेंटियल बल के उपयोग से उपग्रह को स्थिर रखा जाता है। यह बल सैटेलाइट को विभिन्न दिशाओं में संतुलित रखता है और अवकाश को बनाए रखता है।
- इंजन: कुछ सैटेलाइट में स्वतंत्र चलने की क्षमता होती है जिसका उपयोग करके वे अपनी उच्चार्ण गति बनाए रख सकते हैं। इसके लिए, सैटेलाइट में रॉकेट इंजन होता है जिसे प्रयोग किया जाता है जब संचार सैटेलाइट को स्थायी और सही आकृति में लाने की जरूरत होती है।
ये थे कुछ मुख्य कारण जो सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थिर रखते हैं। सैटेलाइट के निर्माण और डिजाइन में भी स्थिरता को ध्यान में रखा जाता है ताकि वह अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक काम कर सके।
सैटेलाइट का उपयोग कहां कहां किया जाता है
सैटेलाइट विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोग होते हैं। यहां कुछ मुख्य क्षेत्रों की सूची है जहां सैटेलाइट का उपयोग किया जाता है:
- संचार: संचार सैटेलाइट विदेशी और देशी संचार सेवाओं के लिए उपयोग होते हैं। इन सैटेलाइट्स के माध्यम से वाणिज्यिक, दूरसंचार, इंटरनेट, टेलीविजन, रेडियो, फोन, डेटा और अन्य संचार सेवाएं प्रदान की जाती हैं।
- निदर्शन: निदर्शन सैटेलाइट वैज्ञानिक अनुसंधान, भू-समुद्री संगठनों के लिए निर्देश, मौसम के पूर्वानुमान और वनस्पति विमापी के लिए उपयोग होते हैं। इन सैटेलाइट्स के माध्यम से भूमि के संसाधनों का मानचित्रण, मौसम पूर्वानुमान, नदी-समुद्र गहराई, वनस्पति कवरेज, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जलवायु अनुसंधान, भू-समुद्री विमापी आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है।
- नेविगेशन: नेविगेशन सैटेलाइट नैविगेशन और स्थानांतरण के लिए उपयोग होते हैं। इन सैटेलाइट्स के माध्यम से नैविगेशन सिस्टम, जैसे कि ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (GPS), स्थानांतरण एवं स्थान सेवाएं प्रदान की जाती हैं।
- वैज्ञानिक अनुसंधान: वैज्ञानिक अनुसंधान सैटेलाइट्स खगोलीय वैज्ञानिक अनुसंधान, खगोलीय तथ्य संग्रह और खगोलीय प्रयोगों के लिए उपयोग होते हैं। इन सैटेलाइट्स के माध्यम से खगोलीय विज्ञान, उपग्रहीय खगोलीय रणनीति, खगोलीय सूचना संग्रह और खगोलीय प्रयोगों के लिए आवश्यक डेटा और जानकारी प्राप्त की जाती है।
- रक्षा: रक्षा सैटेलाइट्स सुरक्षा, सीमावर्ती निगरानी, जासूसी और उपग्रहीय युद्ध सिस्टम के लिए उपयोग होते हैं। इन सैटेलाइट्स के माध्यम से नेतृत्व और आवाज, रडार, सतर्कता और जासूसी के लिए डेटा प्राप्त की जाती है।
- उद्योगिक: उद्योगिक सैटेलाइट्स स्थानीय समय, आंतरराष्ट्रीय टेलीमेट्री, संचार, उद्योगिक निदेश, जैव विज्ञान, पृथ्वी निगरानी, स्वतंत्रता संचालन, संगठन के लिए उपयोग होते हैं। इन सैटेलाइट्स के माध्यम से संगठन की संचालन प्रक्रिया, संचालित उपकरणों की स्थिति, वातावरणीय निगरानी, जैव विज्ञान, संगठन के उपकरणों के प्रदर्शन की जानकारी प्राप्त की जाती है।
यह सिर्फ़ कुछ उदाहरण हैं जहां सैटेलाइट का उपयोग होता है। सैटेलाइट्स का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ रहा है और इसका महत्व तेजी से बढ़ रहा है।
भारत के कितने सैटेलाइट्स हैं?
भारत द्वारा अब तक अनेक संचार सैटेलाइट, विज्ञान सैटेलाइट, नैविगेशन सैटेलाइट और अन्य क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के सैटेलाइटों का निर्माण किया गया है। यहां नीचे भारत के कुछ मुख्य सैटेलाइटों की सूची दी गई है:
- आर्यभट्ट-1: यह भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह है जो 1975 में प्रक्षेपित किया गया था। इसका उद्देश्य मौजूदा प्रौद्योगिकी का मानचित्रण करना था।
- कल्पना-1: यह संचार सैटेलाइट है जो भारतीय माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के लिए आवश्यक सेवाएं प्रदान करता है।
- रेसाट: यह प्रदूषण के स्तर का मानचित्रण करने के लिए वायुमंडलीय नैविगेशन सैटेलाइट है।
- ओसीएम-1: यह वैज्ञानिक और अभियांत्रिकी अनुसंधान के लिए उपयोग होने वाला सैटेलाइट है।
- गीसेट: यह भारतीय संचार सैटेलाइट सिस्टम का हिस्सा है और टेलीकॉम सेवाओं को प्रदान करने के लिए उपयोग होता है।
- इरोसा: यह पृथ्वी की अंतरिक्ष से नजरअंदाज करने वाला प्रदर्शन करता है और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए उपयोग होता है।
- रवि: यह हैबीटेट का एक अंग्रेजी संक्षेपण है और यह चंद्रयान-2 मिशन का एक हिस्सा है जो चंद्रयान-2 उपग्रह के साथ चंद्रमा की सतह पर प्रक्षेपित किया गया है।
यह केवल कुछ मुख्य सैटेलाइटों की सूची है और भारत द्वारा अब तक कई अन्य सैटेलाइट प्रक्षेपित किए गए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा नए सैटेलाइटों के निर्माण और प्रक्षेपण पर नियमित रूप से काम किया जा रहा है।